सियासत – इन-दिनों
कमजोर आत्मविश्वास का शिकार नजर आ रही है कांग्रेस
प्रत्याशी की घोषणा पर विलंब से आम जनता के बीच सवालिया निशान
आर.बी.सिंह ‘राज‘। समय INDIA 24 @सीधी
सीधी जिले की चार विधानसभा सीटों में से दो चर्चित विधानसभा सीट चुरहट एवं सिहावल में पहले से ही तय माने जा रहे हैं पार्टी के दिग्गज नेता अजय सिंह राहुल और कमलेश्वर पटेल को पार्टी ने अपनी पहली सूची में तो चुनाव मैदान में उतार दिया है परंतु बाकी बची दो विधानसभा सीटों सीधी एवं धौहनी में पार्टी द्वारा अभी तक प्रत्याशी घोषित न किए जाने को लेकर जनता के बीच कहीं ना कहीं कांग्रेस की छवि एक कमजोर आत्मविश्वास का शिकार होने जैसी बनी हुई है।
सीधी विधानसभा में कांग्रेस के अभी भी बैक फुट पर सवाल ?
सीधी जिले की दो विधानसभा सीटों सीधी एवं धौहनी जिनमें अभी कांग्रेस द्वारा प्रत्याशियों की घोषणा नहीं की गई है उनकी बात की जाए तो धौहनी में तो अभी भाजपा ने भी अपना प्रत्याशी चुनाव मैदान में नहीं उतारा है परंतु सीधी विधानसभा सीट की यदि बात की जाए तो इस सीट पर भाजपा द्वारा तकरीबन 22 – 23 दिन पहले ही अपने प्रत्याशी बतौर सीधी सांसद रीती पाठक को मैदान में उतार दिया गया था ऐसे में कांग्रेस की पहली सूची में ये अनुमान लगाया जा रहा था कि पार्टी अब तो अपने प्रत्याशी के नाम की घोषणा कर ही देगी परंतु कांग्रेस अभी भी सीधी विधानसभा सीट पर ऊहापोह की स्थिति में नजर आ रही है और इस तरह बैक फुट पर रहकर जनता के बीच में अपने कमजोर आत्मविश्वास का शिकार होने के एक लक्षण को सुर्खियों में बने रहने का मौका दे रही है।
टिकट के दावेदारों में बेचैनी का आलम –विधानसभा क्षेत्र सीधी से कांग्रेस पार्टी की ओर से अभी तक प्रत्याशी घोषित न होने से दावेदारों की धडक़नें बढ़ी हुई हैं। सोशल मीडिया के माध्यम से इसको लेकर पार्टी से जुड़े लोगों का आक्रोश भी सामने आने लगा है।
जातीय समीकरण के फेर में कांग्रेस-दरअसल 2008 के परिसीमन के बाद सीधी विधानसभा क्षेत्र को लेकर अभी तक का कांग्रेस का जो समीकरण रहा है उसमें वो अपने जातीय समीकरण को ही फिट करने के चलते चुरहट सीट पर राजपूत, तो सिहावल सीट पर पिछड़ा वर्ग के समीकरण को साधने के उपरांत इस सीधी विधानसभा की सीट पर ब्राम्हण प्रत्याशी को ही तरजीह देती रही थी। विधानसभा के परिसीमन के बाद 3 बार चुनाव हो चुके हैं। कांग्रेस की ओर से तीनों ही मर्तबा अतीत के वर्षों में कांग्रेस के खिलाफ ही बगावत करके सीधी विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने वाले पूर्व विधायक कमलेश्वर द्विवेदी को पुनः पार्टी में शामिल करके टिकट दी जाती रही है।
कांग्रेस के लिए दुर्भाग्यपूर्ण बात ये भी रही है कि वो अपना जातीय समीकरण तो फिट करना चाहती है परंतु सीधी विधानसभा सीट पर कोई नया और दमदार चेहरा जनता के सामने मैदान में न उतर कर अतीत के गोपद बनास विधानसभा क्षेत्र के कांग्रेस से विधायक रहे कमलेश्वर द्विवेदी को एक कमजोर प्रत्याशी साबित होने के बावजूद भी बार-बार उन पर मेहरबानी दिखाते हुए पिछले तीनों ही चुनाव में सीधी विधानसभा क्षेत्र से उन्हें अपना प्रत्याशी बनाती रही है।
वहीं दूसरी तरफ सीधी विधानसभा क्षेत्र की जनता भी कांग्रेस के इस बुजुर्ग प्रत्याशी को नकारते हुए उन्हें लगातार तीनों मर्तबा पराजय का मुंह दिखाती रही है।
कांग्रेस बार-बार क्यों शहीद कर रही है अपनी सीधी सीट ?
रोचक बात यह है कि कांग्रेस के दिग्गज नेता यदि अपने जातीय समीकरण को फिट करने के लिए सीधी विधानसभा सीट पर किसी ब्राह्मण प्रत्याशी को ही चुनाव मैदान में उतारने की रणनीति पर काम करना चाहते हैं तो उन्हें किसी नए और युवा चेहरे को 5 वर्षों में उसकी लीडरशिप को डेवलप करके चुनाव मैदान में उतारकर मौका देना चाहिए। एक पुराने चेहरे को ही बार-बार सीधी विधानसभा की जनता द्वारा नकारे जाने के उपरांत भी कांग्रेस द्वारा उन्हें प्रत्याशी बनाया जाना कहीं ना कहीं जनता के बीच में ये मैसेज देता है कि कांग्रेस सीधी सीट जीतना ही नहीं चाहती है और कांग्रेस के दिग्गज नेता अपनी अपनी विधानसभा सीटों पर जातीय समीकरण का फायदा लेने के फिराक में सीधी विधानसभा की सीट को शहीद करना ज्यादा बेहतर समझते हैं।
राजपूत दावेदारों ने बना रखा है दबाव –इस बार कांग्रेस सीधी विधानसभा क्षेत्र से ब्राम्हण प्रत्याशी दावेदारों के अलावा राजपूत और वैश्य दावेदारों ने भी कांग्रेस के भीतर टिकट को लेकर जोरदार दबाव बना रखा है।ऐसी परिस्थितियों के बावजूद भी यदि सीधी विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस अपने पुराने समीकरण के अनुसार इस बार भी ब्राम्हण प्रत्याशी को चुनाव मैदान में उतारती है तो पार्टी के भीतर कुछ दावेदार बगावती तेवर अपना सकते हैं।
भाजपा अपने जिताऊ प्रत्याशियों पर लगाती है दांव
चर्चा के दौरान कुछ कांग्रेस जनों का कहना था कि भाजपा द्वारा इस विधानसभा चुनाव के दौरान जातीय समीकरण को साधने के बजाय उसे पूरी तरह से दरकिनार करके ब्राह्मण वर्ग से आने वाले सभी लोगों को जिले की तीन सामान्य विधानसभा सीटों पर प्रत्याशी बनाया गया है। भाजपा द्वारा प्रत्याशी चयन में केवल यही ध्यान दिया गया है कि कौन सा दावेदार चुनाव में जीत दिला सकता है।
इसके उल्टे कांग्रेस पार्टी में जातीय समीकरण के आधार पर ही टिकट देने की पुरानी परंपरा रही है। सीधी जिले में 4 विधानसभा क्षेत्र हैं उसमें दो विधानसभा क्षेत्रों से प्रत्याशी घोषित किए जा चुके हैं। चुरहट से क्षत्रिय एवं सिहावल से पिछड़ा वर्ग के प्रत्याशी घोषित करने के बाद अब सीधी विधानसभा क्षेत्र से ब्राम्हण प्रत्याशी को ही चुनाव मैदान में उतारने की चर्चा बनी हुई है। क्योंकि धौहनी विधानसभा क्षेत्र आदिवासी के लिए आरक्षित है। कांग्रेस पार्टी के बड़े नेता जातीय समीकरण के आधार पर ही अभी तक टिकट का वितरण करते आए हैं। इसी वजह से सीधी विधानसभा क्षेत्र से तीन चुनावों में कांग्रेस को पराजय का सामना करना पड़ा है। यदि यहां से जातीय समीकरण को नजर अंदाज कर जीतने वाले दावेदार को प्राथमिकता दी जाए तो निश्चित ही भाजपा के सुरक्षित किला बने सीधी विधानसभा क्षेत्र को कांग्रेस फतह कर सकती है।
पार्टी के बड़े नेताओं द्वारा टिकट वितरण के दौरान सभी जिलों में जातीय आधार पर ही टिकट वितरण करने की परंपरा बनाकर रखी गई है। जिसके चलते सीधी विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस के लगातार रिपीट किए जा रहे प्रत्याशी को हार का सामना करना पड़ा है। टिकट वितरण के दौरान यह देखना चाहिए कि जमीनी स्तर पर दावेदार की सक्रियता क्या है और उसका जनाधार क्षेत्र में कैसा है। मजबूत जनाधार वाले दावेदार को टिकट देने की शुरूआत होनी चाहिए। अन्यथा इस बार कांग्रेस में चुनाव को लेकर बगावत हो सकती है।