पंकज ने दिया साहस का परिचय, राष्ट्रीय पक्षी की बचाई गई जान

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पंकज ने दिया साहस का परिचय, राष्ट्रीय पक्षी की बचाई गई जान

संजीव मिश्रा ( वरिष्ठ पत्रकार ) सीधी। मोर, जिसका ख्याल आते ही एक ऐसा मनमोहक दृश्य उभरकर सामने आता है, जो बेहद सुखद एहसास कराता है। मोर को नाचते हुए देखना भला किसे रोमांचित नहीं करता। अपने एक रंग.बिरंगे पंखों से मंत्रमुग्ध कर देना वाला पक्षी मोर का अस्तित्व केवल एक पक्षी होने तक ही नहीं सीमित है बल्कि यह हमारा राष्ट्रीय पक्षी भी है। मोर का नाम आते ही मन मे सामान्य रूप से राष्ट्रीय पक्षी होने के नाते देश भक्ति की भावना ओत प्रोत होने लगती है। ऐसे मे जब मोर का जीवन संकट मे हो तो आम जन हों या वन विभाग अमला भला पीछे कैसे रहे। जी हॉ हम बात कर रहे हैं जिला मुख्यालय के समीपी ग्राम ग्राम मुग्वारी मड़वा की जहॉ जंगलो से होते हुए मोर गॉव तक पहुॅच गया और यहॉ आकर अपनी जान बचाने के उद्देश्य से यह आक्रामक हो गया और बच्चो सहित ग्रामीणों को निशाना बनाते हुए चोंटिल करने लगा। जिसकी शिकायत वन मंडल अधिकारी सीधी से कि गयी, जिनके द्वारा त्वरित रूप से रेस्क्यू दल गठित कर मुग्वारी की ओर भेजा गया। जहॉ टीम ने सफलता पूर्वक मोर को पकड़ कर गॉव वालों मे व्याप्त भय को समाप्त किया है वहीं मोर के जीवन को सुरक्षित करने हेतु उसे वन परिक्षेत्र बहरी बदरखाड़ा के जंगलो मे छोड़ा गया।

पंकज ने दिया अदम्य साहस का परिचय -वन विभाग के रेस्क्यू प्रमुख पंकज मिश्रा ने एक बार नहीं बल्कि कई बार जान जोखिम मे डालते हुए वन्य प्राणियों के सुरक्षा एवं आमजनो मे व्याप्त भय को समाप्त करने का सराहनीय कार्य किया है। आपको बतादें कि उक्त रेस्क्यू टीम मे राधे साकेत डिप्टी रेंजर के देख रेख मे पंकज मिश्रा वनरक्षक ने साहस एवं सूझ बूझ का परिचय देते हुए राष्ट्रीय पक्षी को पकड़ कर वन्य प्राणी संरक्षण मे सराहनीय कार्य किया है।

वन्य प्राणियों के लिये वर्षा ऋतु संकट की घड़ी – बताया गया कि वर्षा ऋतु के आगमन के साथ वन्य प्राणियों के लिये मानो संकट की घड़ी निर्मित हो जाती है। ऐसे महौल मे देखने मे आता है कि ये सुरक्षा एवं भोजन की तलाश मे जंगलो से कई बार रहाइसी इलाकों की ओर रूख कर जाते हैं। जिसके चलते आमजनो मे भय का महौल बनता है तो वहीं कई बार इनका जीवन भी संकट मे आ जाता है। आपको बता दें कि भारत सरकार द्वारा मोर को 26 जनवरी 1963 में राष्ट्रीय पक्षी के रूप में घोषित किया गया।

राजाओं महाराजाओं व कवियों की भी पसंद था मोर – हिन्दु मान्यताओं के अनुसार मोर को कार्तिकेय के वाहन मुरुगन के रूप से भी जाना जाता है। कई धार्मिक कथाओं में भी मोर का जिक्र होता है। भगवान कृष्ण ने तो अपने मुकुट में मोर पंख धारण किया हुआ है, और इसी से मोर के धार्मिक महत्व को समझा जा सकता है। महाकवि कालिदास ने अपने महाकाव्य मेघदूत में मोर को राष्ट्रीय पक्षी से भी ऊपर का दर्जा दिया है। सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य के राज्य में जिन सिक्कों का चलन था उनके एक तरफ मोर बना होता था। मुगल बादशाह जहाँ जिस तख़्त पर बैठते थें, उसकी संरचना मोर जैसे आकार की थी। दो मोरों के बीच बादशाह की गद्दी हुआ करती थी और उसके पीछे पंख फैलाए मोर। हीरे.पन्नों जैसे क़ीमती रत्नों से जडि़त सिंहाशन से भी ऊपर था मोर एवं उसका प्रतीक। मोर को राष्ट्रीय पक्षी के रूप में घोषित किए जाने के पीछे केवल उसकी सुंदरता ही नहीं बल्कि उसकी लोकप्रियता भी है। एक ऐसी लोकप्रियता जिसका नाता आज से नहीं बल्कि पिछले कई वर्षों से है।