“गांव मा अब शहर”
गांव मा अब शहर घुसत लाहय,
हमार खुशी अब ओखा खटकत लाहय।
मंजिला पर मंजिला मकान बनत लाहय,
आमा महुआ पीपल ओखा खटकट लाहय।
घर – घर मा अब ए.सी. फ्रीज रखत लाहय,
बेनवा – सुराही हमार ओखा खटकत लाहय।
दाढ़ी – बाल मा अब रंग चढ़त लाहय,
पकी दाढ़ी हमार ओखा खटकट लाहय।
विलायती रिवाज मा काजु होत लाहय,
संस्कारी रिवाज हमार ओखा खटकट लाहय।
अकेला – अकेली के जीवन बढ़त लाहय,
बाप – महतारी अब ओखा खटकट लाहय।
गांव मा अब शहर घुसत लाहय,
हमार खुशी अब ओखा खटकत लाहय।
– अमित कुमार गौतम “स्वतंत्र” (पत्रकार एवं रचनाकार)
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