कविता – विश्व लाड़ली
विश्व कि तुम लाड़ली हो!
जगत कि कल्याणी हो!!
इस जगत में सताई हो!
फिर भी समाज को बचाई हो!!
अपने ही जगत में लाड़ली!
प्रेम व्यावहार कि पराई हो!!
फिर भी सारा बोझ लाड़ली!
अपने सिर ले आई हो!!
तेरे साथ कितना अन्याय लाड़ली!
फिर भी सबको अपनाई हो!!
जब भी संकट मडराई है लाड़ली!
तुम तीर तलवार चलाई हो!!
तुम ही जग कल्याणी माँ हो!
तुम ही विश्व लाड़ली हो!
गर्व जगत को होता तब से!
जब से वीर साहसी बनती आई हो!!
(नोट :- यह कविता विश्व लाड़ली अमित कुमार गौतम “स्वतंत्र” द्वारा रचित काव्य संग्रह पुस्तक “अनुराग“ का अंश है।)