आज आपको याद करना आवश्यक था….!
आज से लगभग 05 वर्ष पूर्व ‘अंतरराष्ट्रीय नदी महोत्सव’ मे मै आपको प्रत्यक्ष रूप से देखा था और आपसे भेंट हुई थी। आपका वक्तव्य सुनने को मिला, संगोष्ठी में शामिल होकर विचार रखने का मौका मिला और नर्मदा नदी के तट में नर्मदा आरती तक आपके आस – पास रहा और आपको महान आकृति में देखता रहा। आपका नाम ऐसे ही “अनिल माधव दवे” नहीं था बल्कि पर्यावरण के संरक्षण हेतु आपका उज्जैन (बड़नगर) मे अवतरण हुआ था। आप पर्यावरणविद, विशेष रूप से नदी संरक्षण कार्यकर्ता, लेखक, शौकिया पायलट, संसद सदस्य एवं भारत सरकार में पर्यावरण, वन तथा जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के ऐसे राज्य मंत्री थे जिन्हे पर्यावरण कि गहरी समझ थी। आपने पर्यावरण के लिए एवं उसके संरक्षण व संतुलन हेतु अथक – अथक प्रयास किया है जिसका उल्लेख करना मतलब 100 से ज्यादा पृष्ठ कि एक पुस्तक लिखना है।। ऐसे महान आकृति/ पर्यावरण चिंतक को आज याद करना आवश्यक था और पौध रोपण।
– अमित कुमार “स्वतंत्र”
(पत्रकार, रचनाकार एवं सामाजिक कार्यकर्ता)
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स्व. अनिल माधव दवे से जुड़ा किस्सा (अतिसंक्षिप्त)
मध्य प्रदेश सरकार ने सिंहस्थ कुंभ मेला 2016 के साथ ही ‘अंतर्राष्ट्रीय विचार महाकुंभ’ का आयोजन किया था। ‘जीवन जीने का सही तरीका’ विषय पर आयोजित विचार महाकुंभ में धार्मिक संत, सभी दलों के नेता,भारत और विदेश से विचारक और कार्यकर्ता शामिल हुए थे। प्रत्येक व्यक्ति को कुंभ मेले की पौराणिक कथा के बौद्धिक मंथन में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित किया गया था और इस मंथन से जो सार तत्व हासिल हुआ उसे बाद में सिंहस्थ के सार्वभौमिक घोषणा पत्र के 51 बिन्दु के रूप में घोषित किया गया था।
जैसा कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने समापन समारोह के दौरान रेखांकित किया था कि मई 1916 में विचार महाकुंभ समाज से संबंधित प्रासंगिक मुद्दों और चुनौतियों पर विचार कर सदियों पुराने पारंपरिक तरीकों को पुनर्जीवित करने का प्रयास था। इस कार्यक्रम को काफी सराहना मिली। श्री मोदी और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने इस कार्यक्रम की परिकल्पना के लिए श्री अनिल माधव दवे को श्रेय दिया, जो उस समय मध्य प्रदेश से राज्य सभा के सदस्य थे। कार्यक्रम के मुख्य आयोजक श्री दवे ने इस महा कार्यक्रम से संबंधित प्रत्येक पहलुओं को व्यक्तिगत रूप से ध्यान दिया था। खाने के शौकीन श्री दवे ने लोगों के लिए फल, मिठाई और आईसक्रीम/कुल्फी के अलावा कई प्रकार के फूड स्टॉल की व्यवस्था की थी। अपनी आदत के अनुरूप श्री दवे ने ‘200 किलो भोजन के बर्बाद’ होने से बचाने के लिए सम्मानीय प्रतिभागियों को फटकार लगाते हुए हाथ जोड़कर उनसे आग्रह किया कि वे ‘अपनी प्लेटों में उतना ही खाना लें, जितना वे खा सकते हैं’। उन्होंने कहा था कि ‘सभी के लिए काफी भोजन है, लेकिन बर्बाद करने के लिए नहीं। क्या आपको पता है कि इस खाद्यान्न के उत्पादन में इतनी मेहनत लगी है ? यह केवल पर्यावरण की क्षति है।’
ये दवे ही थे, जो न सिर्फ एक कार्यक्रम को निर्बाध व बेहतर ढंग से आयोजित करते थे, बल्कि उनका जोर इस बात पर भी था कि भोजन की बर्बादी नहीं होनी चाहिए, जो कि एक विशिष्ट भारतीय विचार है। और जब सार्वभौमिक घोषणा की गई थी, तब उन्होंने बिल्कुल यही बात कही थी – “यह सार्वभौमिक घोषणा महज कागज पर नहीं रहनी चाहिए, बल्कि इसे सही भावना के साथ लागू किया जाना चाहिए। इस संदेश को न केवल अन्य राज्यों में भेजा जाना चाहिए बल्कि संयुक्त राष्ट्र में भी इससे अवगत कराया जाएगा।”